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अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च, 2021 विशेष : भारतीय नारी कब तक रहेगी बेचारी?

नारी का नारी के लिये सकारात्मक दृष्टिकोण न होने का ही परिणाम है कि पुरुष उसका पीढ़ी-दर-पीढ़ी शोषण करता आ रहा हैं। इसी कारण नारी में हीनता एवं पराधीनता के संस्कार संक्रान्त होते रहे हैं। जिन नारियों में नारी समाज की दयनीय दशा के प्रति थोड़ी भी सहानुभूति नहीं है, उन नारियों का मन स्त्री का नहीं, पुरुष का मन है, ऐसा प्रतीत होता है। अन्यथा अपने पांवों पर अपने हाथों से कुल्हाड़ी कैसे चलाई जा सकती है?

March 6, 2021
in आलेख, साहित्य
International Women's Day March 8, 2021 Special: How long will Indian women be poor?

International Women's Day March 8, 2021 Special: How long will Indian women be poor?

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ललित गर्ग

नारी का नारी के लिये सकारात्मक दृष्टिकोण न होने का ही परिणाम है कि पुरुष उसका पीढ़ी-दर-पीढ़ी शोषण करता आ रहा हैं। इसी कारण नारी में हीनता एवं पराधीनता के संस्कार संक्रान्त होते रहे हैं। जिन नारियों में नारी समाज की दयनीय दशा के प्रति थोड़ी भी सहानुभूति नहीं है, उन नारियों का मन स्त्री का नहीं, पुरुष का मन है, ऐसा प्रतीत होता है। अन्यथा अपने पांवों पर अपने हाथों से कुल्हाड़ी कैसे चलाई जा सकती है? अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाते हुए नारी के मन में एक नयी, उन्नायक एवं परिष्कृत सोच पनपे, वे नारियों के बारे में सोचें, अपने परिवार, समाज एवं राष्ट्र की नारी की पीड़ा को अपनी पीड़ा समझें और उसके समाधान एवं प्रतिकार के लिये कोई ठोस कदम उठायें तो नारी शोषण, उपेक्षा, उत्पीड़न एवं अन्याय का युग समाप्त हो सकता है। इसी उद्देश्य से नारी के प्रति सम्मान एवं प्रशंसा प्रकट करते हुए 8 मार्च का दिन महिला दिवस के रूप में उनके लिये निश्चित किया गया है, यह दिवस उनकी सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक उपलब्धियों के उपलक्ष्य में, उत्सव के रूप में मनाया जाता है।

अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस से पहले और बाद में हफ्ते भर तक विचार विमर्श और गोष्ठियां होंगी जिनमें महिलाओं से जुड़े मामलों जैसे महिलाओं की स्थिति, कन्या भू्रण हत्या की बढ़ती घटनाएं, लड़कियों की तुलना में लड़कों की बढ़ती संख्या, तलाक के बढ़ते मामले, गांवों में महिला की अशिक्षा, कुपोषण एवं शोषण, महिलाओं की सुरक्षा, महिलाओं के साथ होने वाली बलात्कार की घटनाएं, अश्लील हरकतें और विशेष रूप से उनके खिलाफ होने वाले अपराध को एक बार फिर चर्चा में लाकर सार्थक वातावरण का निर्माण किया जायेगा। लेकिन इन सबके बावजूद एक टीस से मन में उठती है कि आखिर नारी कब तक भोग की वस्तु बनी रहेगी? उसका जीवन कब तक खतरों से घिरा रहेगा? बलात्कार, छेड़खानी, भ्रूण हत्या और दहेज की धधकती आग में वह कब तक भस्म होती रहेगी? कब तक उसके अस्तित्व एवं अस्मिता को नौचा जाता रहेगा? विडम्बनापूर्ण तो यह है कि महिला दिवस जैसे आयोजन भी नारी को उचित सम्मान एवं गौरव दिलाने की बजाय उनका दुरुपयोग करने के माध्यम बनते जा रहे हैं।

महिलाओं के प्रति एक अलग तरह का नजरिया इन सालों में बनने लगा है, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नारी के संपूर्ण विकास की संकल्पना को प्रस्तुत करते हुए अनेक योजनाएं लागू की है, जिनमें अब नारी सशक्तीकरण और सुरक्षा के अलावा और भी कई आयाम जोड़े गए हैं। सबसे अच्छी बात इस बार यह है कि समाज की तरक्की में महिलाओं की भूमिका को आत्मसात किया जाने लगा है। आज भी आधी से अधिक महिला समाज को पुरुषवादी सोच के तहत बहुत से हकों से वंचित किया जा रहा है। वक्त बीतने के साथ सरकार को भी यह बात महसूस होने लगी है। शायद इसीलिए सरकारी योजनाओं में महिलाओं की भूमिका को अलग से चिह्नित किया जाने लगा है।

एक कहावत है कि औरत जन्मती नहीं, बना दी जाती है और कई कट्ट्टर मान्यता वाले औरत को मर्द की खेती समझते हैं। कानून का संरक्षण नहीं मिलने से औरत संघर्ष के अंतिम छोर पर लड़ाई हारती रही है। इसीलिये आज की औरत को हाशिया नहीं, पूरा पृष्ठ चाहिए। पूरे पृष्ठ, जितने पुरुषों को प्राप्त हैं। पर विडम्बना है कि उसके हिस्से के पृष्ठों को धार्मिकता के नाम पर ‘धर्मग्रंथ’ एवं सामाजिकता के नाम पर ‘खाप पंचायते’ घेरे बैठे हैं। पुरुष-समाज को उन आदतों, वृत्तियों, महत्वाकांक्षाओं, वासनाओं एवं कट्टरताओं को अलविदा कहना ही होगा जिनका हाथ पकड़कर वे उस ढ़लान में उतर गये जहां रफ्तार तेज है और विवेक अनियंत्रण हैं जिसका परिणाम है नारी पर हो रहे नित-नये अपराध और अत्याचार। पुरुष-समाज के प्रदूषित एवं विकृत हो चुके तौर-तरीके ही नहीं बदलने हैं बल्कि उन कारणों की जड़ों को भी उखाड़ फेंकना है जिनके कारण से बार-बार नारी को जहर के घूंट पीने एवं बेचारगी को जीने को विवश होना पड़ता है। पुरुषवर्ग नारी को देह रूप में स्वीकार करता है, लेकिन नारी को उनके सामने मस्तिष्क बनकर अपनी क्षमताओं का परिचय देना होगा, उसे अबला नहीं, सबला बनना होगा, बोझ नहीं शक्ति बनना होगा।

‘यत्र पूज्यंते नार्यस्तु तत्र रमन्ते देवता’- जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं। किंतु आज हम देखते हैं कि नारी का हर जगह अपमान होता चला जा रहा है। उसे ‘भोग की वस्तु’ समझकर आदमी ‘अपने तरीके’ से ‘इस्तेमाल’ कर रहा है, यह बेहद चिंताजनक बात है। आज अनेक शक्लों में नारी के वजूद को धुंधलाने की घटनाएं शक्ल बदल-बदल कर काले अध्याय रच रही है। देश में गैंग रेप की वारदातों में कमी भले ही आयी हो, लेकिन उन घटनाओं का रह-रह कर सामने आना त्रासद एवं दु:खद है। आवश्यकता लोगों को इस सोच तक ले जाने की है कि जो होता आया है वह भी गलत है। महिलाओं के खिलाफ ऐसे अपराधों को रोकने के लिए कानूनों की कठोरता से अनुपालना एवं सरकारों में इच्छाशक्ति जरूरी है। कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न के विरोध में लाए गए कानूनों से नारी उत्पीड़न में कितनी कमी आयी है, इसके कोई प्रभावी परिणाम देखने में नहीं आये हैं, लेकिन सामाजिक सोच में एक स्वत: परिवर्तन का वातावरण बन रहा है, यहां शुभ संकेत है। महिलाओं के पक्ष में जाने वाले इन शुभ संकेतों के बावजूद कई भयावह सामाजिक सच्चाइयां बदलने का नाम नहीं ले रही हैं।

देश के कई राज्यों में लिंगानुपात खतरे के निशान के करीब है। देश की राजधानी में महिलाओं के हक के लिए चाहे जितने भी नारे लगाए जाएं, लेकिन खुद दिल्ली शहर से भी बुरी खबरें आनी कम नहीं हुई हैं। तमाम राज्य सरकारों को अपनी कागजी योजनाओं से खुश होने के बजाय अपनी कमियों पर ध्यान देना होगा। योजना अपने आप में कोई गलत नहीं होती, कमी उसके क्रियान्वयन में होती है। कुछ राज्यों में बेटी की शादी पर सरकार की तरफ से एक निश्चित रकम देने की स्कीम है। इससे बेटियों की शादी का बोझ भले ही कम हो, लेकिन इससे बेटियों में हीनता की भावना भी पनपती है। ऐसी योजनाओं से शिक्षा पर अभिभावकों का ध्यान कम जाएगा। जरूरत नारी का आत्म-सम्मान एवं आत्मविश्वास कायम करने की है, उन्हें आत्मनिर्भर बनाने की है। नारी सोच बदलने की है। उन पर जो सामाजिक दबाव बनाया जाता है उससे निकलने के लिए उनको प्रोत्साहन देना होगा। ससुराल से निकाल दिए जाने की धमकी, पति द्वारा छोड़ दिए जाने का डर, कामकाजी महिलाओं के साथ कार्यस्थलों पर भेदभाव, दोहरा नजरियां, छोटी-छोटी गलतियों पर सेवामुक्त करने की धमकी, बड़े अधिकारियों द्वारा सैक्सअल दबाब बनाने, यहां तक कि जान से मार देने की धमकी के जरिये उन पर ऐसा दबाव बनाया जाता है। इन स्थितियों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण है नारी को खुद हिम्मत जुटानी होगी, साहस का परिचय देना होगा लेकिन साथ ही समाज को भी अपने पूर्वाग्रह छोड़ने के लिए तैयार करना होगा। इन मुद्दों पर सरकारी और गैरसरकारी, विभिन्न स्तरों पर सकारात्मक नजरिया अपनाया जाये तो इससे न केवल महिलाओं का, बल्कि पूरे देश का संतुलित विकास सुनिश्चित किया जा सकेगा।

रामायण रचयिता आदि कवि महर्षि वाल्मीकि की यह पंक्ति-’जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’ जन-जन के मुख से उच्चारित है। प्रारंभ से ही यहाँ ‘नारीशक्ति’ की पूजा होती आई है फिर क्यों नारी अत्याचार बढ़ रहे हैं? क्यों महिला दिवस मनाते हुए नारी अस्तित्व एवं अस्मिता को सुरक्षा देने की बात की जाती है? क्यों उसे दिन-प्रतिदिन उपेक्षा एवं तिरस्कार का सामना करना पड़ता है। इसके साथ-साथ भारतीय समाज में आई सामाजिक कुरीतियाँ जैसे सती प्रथा, बाल विवाह, पर्दा प्रथा, बहू पति विवाह और हमारी परंपरागत रूढ़िवादिता ने भी भारतीय नारी को दीन-हीन कमजोर बनाने में अहम भूमिका अदा की। बदलते परिवेश में आधुनिक महिलाओं के लिए यह आवश्यक है कि मैथिलीशरण गुप्त के इस वाक्य-’आँचल में है दूध’ को सदा याद रखें। उसकी लाज को बचाएँ रखें। बल्कि एक ऐसा सेतु बने जो टूटते हुए को जोड़ सके, रुकते हुए को मोड़ सके और गिरते हुए को उठा सके।

(इस लेख में व्यक्त विचार, लेखक के निजी विचार हैं. आलेख में दी गई किसी भी सूचना की तथ्यात्मकता, सटीकता, संपूर्णता, अथवा सच्चाई के प्रति खास रपट उत्तरदायी नहीं है।

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