गुमनाम हर बशर की पहचान बनके जी
जो हैं उदास उनकी मुस्कान बनके जी।
गूंगी हुई है सरगम, घायल हैं साज़ सब,
हर हाल में तू इनका सम्मान बनके जी।
जो मन को मुग्ध कर दे, हलचल मचा दे जो,
ऐसी तू शंख-मुरली की तान बनके जी।
आलस तेरा किसी दिन अभिशाप क्यों बने,
अब जाग, उठ, धरा पर वरदान बनके जी।
आवाज़ दब न जाए घर में पड़े-पड़े,
लोगों से मिल, तू सबका सहगान बनके जी।
चेतन आनंद
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