हम तुम्हारे ग़ुलाम हो न सके,
ख़ास रह करके आम हो न सके।
हमने अपनाये नहीं हथकंडे,
इसलिये अपने काम हो न सके।
जी-हज़ूरी किसी की हो न सकी,
ये पदक अपने नाम हो न सके।
रोज़ सूरज-सा निकलना था हमें,
इक सुहानी-सी शाम हो न सके।
इश्क से यारी करके बैठ गये,
दर्द सारे तमाम हो न सके।
चेतन आनंद
© 2021 Khash Rapat - SEO By Dilip Soni.