हमारे हौसले अहसास की हद से बड़े होते
अगर अपने नहीं होते तो हम क़द से बड़े होते।
हमें ही छू न पायीं भोर की किरणें शिकायत है
नहीं तो हम भी शायद एक बरगद से बड़े होते।
हमारी ही कमी थी, हम ही घबराये रहे, वरना
हमारे दायरे तय था कि मक़सद से बड़े होते।
शुरू से अंत तक ख़ुद पर भरोसा हो नहीं पाया
नहीं तो हौसले अपने भी अंगद से बड़े होते।
हमारी भी ग़ज़ल में खूबियां लोगों को मिल जातीं
भले ही बौने रहते हम मगर पद से बड़े होते।
– चेतन आनंद
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