वायसराय लॉर्ड इरविन और महात्मा गांधी के बीच समझौता
New Delhi 02 अक्टूबर (एजेंसी) 8 अप्रैल, 1929 को भगत सिंह ने अपने साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ दिल्ली में केंद्रीय असेंबली में दो बम फेंके और मौके से ही गिफ्तारी भी दी। भगत सिंह का मकसद किसी को मारना नहीं था। पब्लिक सेफ्टी बिल और ट्रेड डिस्प्यूट एक्ट के विरोध के साथ आजादी की आवाज दुनिया तक पहुंचाना था। भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को 7 अक्टूबर 1930 को फांसी की सजा सुनाई गई और तय तारीख से एक दिन पहले 23 मार्च 1931 को लाहौर जेल में फांसी दे दी गई। फांसी से 17 दिन पहले यानी 5 मार्च 1931 को वायसराय लॉर्ड इरविन और महात्मा गांधी के बीच एक समझौता हुआ, जिसे गांधी इरविन पैक्ट के नाम से जानते हैं।
कांग्रेस ने सविनय अवज्ञा आंदोलन स्थगित किया
समझौते की प्रमुख शर्तों में हिंसा के आरोपियों को छोड़कर बाकी सभी राजनीतिक बंदियों को रिहा किया जाना शामिल था। इसके अलावा भारतीय को समुद्र किनारे नमक बनाने का अधिकार, आंदोलन के दौरान इस्तीफा देने वालों की बहाली, आंदोलन के दौरान जब्त संपत्ति वापस किए जाने जैसी बातें शामिल थीं। इसके बदले में कांग्रेस ने सविनय अवज्ञा आंदोलन स्थगित कर दिया और दूसरे गोलमेज सम्मेलन में जाने को राजी हो गई।
इतिहासकार एजी नूरानी अपनी किताब The Trial of Bhagat Singh के 14वें चैप्टर Gandhi’s Truth में कहते हैं कि भगत सिंह का जीवन बचाने में गांधी ने आधे-अधूरे प्रयास किए। भगत सिंह की मौत की सजा को कम करके उम्र कैद में बदलने के लिए उन्होंने वायसराय से जोरदार अपील नहीं की थी।
उन्हें कामचलाऊ कहना शांति के दूत का अपमान : अनिल नौरिया
इतिहासकार और गांधी पर कई किताबें लिखने वाले अनिल नौरिया का कहना है कि गांधी ने भगत सिंह की फांसी को कम कराने के लिए तेज बहादुर सप्रू, एमआर जयकर औऱ श्रीनिवास शास्त्री को वायसराय के पास भेजा था। अप्रैल 1930 से अप्रैल 1933 के बीच ब्रिटिश सरकार में गृह सचिव रहे हर्बर्ट विलियम इमर्सन ने अपने संस्मरण में लिखा है कि भगत सिंह और उनके साथियों को बचाने के लिए गांधी के प्रयास ईमानदार थे और उन्हें कामचलाऊ कहना शांति के दूत का अपमान है।
गांधी जी के मुताबिक, ‘भगत सिंह और उनके साथियों के साथ बात करने का मौका मिला होता तो मैं उनसे कहता कि उनका चुना हुआ रास्ता गलत और असफल है। ईश्वर को साक्षी रखकर मैं ये सत्य जाहिर करना चाहता हूं कि हिंसा के मार्ग पर चलकर स्वराज नहीं मिल सकता। सिर्फ मुश्किलें मिल सकती हैं।’
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